सारे जहाँ से अच्छा
( तराना-ए-हिंदी )
बाँग-ए-दरा, भाग-१, १९०५, मूळ हिंदी गीतः इक्बाल, संगीतः रवी, गायकः सोना ठाकूर
चित्रपटः अपना घर, सालः १९६०, भूमिकाः प्रेमनाथ, श्यामा, नंदा, लीला मिश्रा
मराठी अनुवाद: नरेंद्र गोळे २००९०१२२
धृ
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिसताँ हमारा
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सार्या जगात सच्चा भारत हा देश आमचा आम्ही देशभक्त सारे रहिवास हाच आमचा
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१
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गुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा परबत वो सबसे ऊँचा मसाया आसमाँ का वो संतरी हमारा वो पासबाँ हमारा
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फिरता आम्ही विदेशी मन भारतात राहे समजा आम्हा तिथेची मन राहते जिथे हे सर्वोच्च पर्वतच तो आकाशीचा सखा की पहार्यास तोच आमच्या सहार्यास तोच राहे
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२
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गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ गुलशन है जिसके दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझको उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा
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खेळती कडेवरती ज्याच्या नद्या हजारो फुलते हे राष्ट्रजीवन त्या वैभवी जयाच्या स्मरतो का दिन तुला तो गंगौघा सांग मज तू तुझिया तीरी उतरला होता थवाच आमचा
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३
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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्ताँ हमारा यूनान मिस्र रोमाँ सब मिट गए जहाँ से अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशाँ हमा
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शिकवत न धर्म कुठला आपसांत वैर धरणे हिंदी असू आम्ही अन् भारत हा देश आमचा चीनी इजिप्ती रोमन कुणीही न शेष बाकी अजूनही दिगंत राहे सन्मान भारताचा
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४
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कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदयों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा 'इक्बाल' कोई मरहूम अपना नहीं जहाँ में मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
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काही असे खचितच सुगी आमची सरेना जरी राहिले जगच हे शत्रू बनून आमचा 'इक्बाल' साथी कुणी ना जगी आपला दिसे ह्या कोणास ज्या कळावे सल कोणता हृदी ह्या
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