२०१२-११-२८

स्तोत्रानुवाद-०१: रावणविरचित शिवतांडव

 



























॥ रावण विरचित शिव तांडव स्तोत्र


 

मूळ संस्कृत श्लोक

 

मराठी अनुवाद

 



जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकारचंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम्‌

जटांमधून धावत्या जलांनि धूत-कंठ जो
धरीत सर्पमालिका, गळ्यात हार शोभतो
डुमूड्डुमू करीत या, निनाद गाजवा शिवा
करीत तांडव प्रचंड, शंकरा शुभं करा



जटा कटाहसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम

जटांतुनी गतीस्थ, गुंतल्या झर्‍यांपरी अहा
तरंग ज्याचिया शिरी विराजती, शिवा पहा
ललाट ज्योतदाह ज्या शिवाचिया शिरी वसे
किशोर चंद्रशेखरा-प्रती रुचीहि वाढु दे



धराधरेंद्रनंदिनी विलास बंधुबंधुर-
स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोदमानमानसे
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि

नगाधिराज-कन्यका-कटाक्ष मोदिता शिवे
दिगंत संतती स्फुरून, मोदतीहि भक्त हे
कृपाकटाक्ष टाकिता जया, विपत्ति मावळे
कधी दिगंबरामुळे कळे न रंजना मिळे



जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे
मदांधसिंधुरस्फुरत्व गुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि

जटाभुजंग तद्मणी-प्रदीप्त कांति ह्या दिशा
कदंब-पुष्प-पीत-दीप्त, शोभती झळाळत्या
गजासुरोत्तरीय ज्या विभूषवी दिगंबरा
प्रती जडो मती, घडो मनोविनोद, तारका



सहस्रलोचनप्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः

सहस्रलोचनादि देव, पादस्पर्शता सदा
तयांस भूषवित त्या, फुलांनि भूषती पदे
भुजंगराज हार हो, नि बांधतो जटाहि तो
प्रसन्न भालचंद्र तो, चिरायु संपदा करो



ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्‌
सुधामयुखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तु नः

कपाल-नेत्र-पावका क्षणात मोकलूनिया
वधी अनंग, हारवी सुरेंद्र आदि देवता
शिरास भूषवीतसे सुधांशुचंद्र ज्याचिया
कपालिना, जटाधरा, दिगंत संपदा करा



करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाहुतीकृत प्रचंडपंचसायके
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम

अनंग ध्वंसिला जिने, त्रिनेत्रज्योत तीच ती
नगाधिराज-नंदिनी-स्तनाग्र भाग वेधती
सुचित्र रेखते तिथे जयाचि दृष्टी योजुनी
त्रिलोचनाप्रती मना, जिवास वाढु दे रती



नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहुनिशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकंधरः
निलिम्पनिर्झरिधरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः

नव्या घनांनि दाटली, निशावसेपरी जशी
जटानिबद्धजान्हवीधरा प्रभा विभूषवी
गजेंद्र-चीर-शोभिता शशीकला प्रकाशवी
जगास धारका कृपा करून श्रीस वाढवी



प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा-
वलंबिकंठकंधरारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे

प्रफुल्ल नील पंकजापरी प्रदिप्त कंठ ज्या
जये त्रिपूर ध्वंसिला, तसाच कामदेव वा
भवास तारणार आणि याग ध्वंसत्या हरा
भजेन शंकरास मी, गजांतका यमांतका


१०

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम्‌
स्मरांतकं पुरातकं भवांतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे

कलाबहारमाधुरीस भृंग जो शिवा असे
अनंगहंत आणि जो त्रिपूर, याग ध्वंसतो
भवास तारका हरा, सदा शुभंकरा हरा
भजेन त्या शिवास मी, गजांतका यमांतका


११

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुर त्करालभालहव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि द्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवःशिवः

गतीस्थ सर्पहार जे, विषाग्नि सोडती असे
फणा उभा करून ते, कपालि ओतती विषे
मृदंगनाद गाजतो, ध्वनी मनास मोहतो
पवित्र तांडवी शिवा, विराजतो नि शोभतो


१२

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तीकः कदा सदाशिवं भजाम्यम्‌

शिळा नि शेज, मोतियांचि माळ, साप वा असो
जवाहिरे नि मृत्तिका, विपक्ष, मित्र वा असो
तृणे नि कोमलाक्षि, नागरिक वा नरेंद्र वा
करून भेद नाहिसे, कधी भजेन मी शिवा


१३

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌

कधी शिरी धरून हात, शंकरा स्तवेन मी
वसेन जान्हवीतिरी विमुक्त होउनी मती
सुनेत्रचंचलेचिया कपालिचा शिवायही
चिरायु सौख्य पावण्या, कधी सदा स्मरेन मी


१४

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहर्निशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषांचयः

पदी विनम्र देवतांशिरी कळ्या, कदंब जे
तये चितारली, मनोज्ञ रूप रेखली, पदे
विभूषति, सुशोभति, मनोहराकृतींमुळे
प्रसन्न ती करो अम्हा, सदाच सौरभामुळे


१५

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना
विमुक्त वामलोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌

विशाल सागरातल्या शुभेच्छु पावकापरी
महाष्टसिद्धिकामना करीत सर्व सुंदरी
विवाहकालि शंकरा व पार्वतीस चिंतिती
जगास जिंकता ठरो,शिवायमंत्रता ध्वनी


१६

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्‌ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम्‌
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्‌

सदा करून मोकळ्या स्वरात श्लोक पाठ हे
स्मरून वा श्रवून हे, विशुद्धता सदा मिळे
हरीप्रती, गुरूप्रती, रती, न वेगळी गती
अशा जिवास मोहत्या, शिवाप्रती सदा रुची


१७

पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः

पूजासमाप्तिस संध्येस म्हणेल जो हे
लंकेशगीत शिवस्तोत्र अनन्य-भावे
शंभू तया, रथ-गजेंद्र-तुरंग-स्थायी
लक्ष्मी प्रसन्न-वदना, वर-दान देई

 

॥ इति श्री. रावणकृतं
शिव-तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

अशाप्रकारे, श्री. रावण विरचित
शिव-तांडव स्तोत्र संपूर्ण होत आहे.


संदर्भः

१.    शिवतांडवस्तोत्राचा हिंदीत अर्थ
http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/vijayadashami/0710/19/107101...

२.    पंडित जसराज यांनी गायलेले
http://mp3ruler.com/mp3/shiv_tandav_stotram_pandit_jasraj.html

३.    रामदास कामत यांनी गायलेले
http://music.cooltoad.com/music/song.php?id=456184&PHPSESSID=1eb37958618...

४.    मूळ पंचचामर छंदातीलस्व. बजरंग लाल जोशी द्वारा रचित हिंदी अनुवाद
http://joshikavi.blogspot.in/2011/03/blog-post_1945.html

५.    अनुवाद रंजन http://anuvad-ranjan.blogspot.in/2012/11/blog-post.html#links 

६.    ॥ रावण विरचित शिव तांडव स्तोत्र ॥ - मराठी अनुवाद मायबोली डॉट कॉम http://www.maayboli.com/node/39386 

७.    शिव तांडव स्तोत्र - मराठी अनुवाद मिसळपाव डॉट कॉम
http://www.misalpav.com/node/23341 

८.    शिवतांडव स्तोत्राचा संगीतबद्ध मराठी अनुवाद http://www.maayboli.com/node/41491 

९.    शिवतांडव स्तोत्राचा अधोभारणक्षम संगीतबद्ध मराठी अनुवाद https://www.dropbox.com/s/eacdgyh19jye6pt/SHIVFINALrev3.MP3