मूळ
गीतकारः मजरूह,
संगीतः रवी,
गायकः किशोर,
आशा;
चित्रपटः दिल्ली
का
ठग,
सालः १९५८,
भूमिकाः किशोर,
नूतन
मराठी
अनुवाद:
नरेंद्र
गोळे
धृ
|
किः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का
किनारा,
ये
चंचल
हवा
|
किः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल
हवा
|
आः
|
कहा
दो
दिलों
ने,
की
होंगे
न
मिल
कर,
कभी
हम
जुदा
|
आः
|
म्हणाली
मने
दोन,
की
विलगू
न
आम्ही,
एक
होऊन
पुन्हा
|
|
दोनोः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का
किनारा,
ये
चंचल
हवा
|
दोघेः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल
हवा
|
|
१
|
आः
|
ये
क्या
बात
है
आज
की
चांदनी
में,
के
हम
खो
गये
प्यार
की
रागिनी
में
|
आः
|
हे
काय
जाहले
आज
या
चांदण्याला,
की
आम्ही
लागलो
प्रेम
आलापण्याला
|
किः
|
ये
बाहों
में
बाहें,
ये
बहकी
निगाहें,
लो
आने
लगा
झिंदगी
का
मझा
|
किः
|
हे
हातात
हात,
सरस
दृष्टिक्षेप,
अहा
येतसे
आयुष्याची
मजा
|
|
दोनोः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का
किनारा,
ये
चंचल
हवा
|
दोघेः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल
हवा
|
|
२
|
किः
|
सितारों
की
महफिल
ने
करके
इशारा,
कहा
अब
तो
सारा
जहा
है
तुम्हारा
|
किः
|
इशारा
करून
सांगती
तारका
ह्या,
की
तुमचे
असे
सर्व
जग
हा
पसारा
|
आः
|
मुहब्बत
जवा
हो,
खुला
आसमा
हो,
करे
कोई
दिल
आरझू
और
क्या
|
आः
|
वयातील
प्रीती,
खुला
आसमंत,
कुणी
मानसी
कांक्षी
आणखिन
काय
|
|
दोनोः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का
किनारा,
ये
चंचल
हवा
|
दोघेः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल
हवा
|
|
३
|
आः
|
कसम
है
तुम्हे
तुम
अगर
मुझसे
रूठे
|
आः
|
शपथ
आहे
तुला
जर
का,
रुसलास
तू
तर
|
किः
|
रहे
सांस
जब
तक,
ये
बंधन
न
टूटे
|
किः
|
असे
श्वास
तोवर,
तुटो
ना
हे
बंधन
|
|
आः
|
तुम्हें
दिल
दिया
है,
ये
वादा
किया
है,
सनम
मैं
तुम्हारी
रहूंगी
सदा
|
आः
|
तुला
प्रीत
दिली,
दिले
हे
वचनही,
प्रिया
ही
तुझीच
बघ,
मी
राहीन
सदा
|
|
किः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का
किनारा,
ये
चंचल
हवा
|
किः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल
हवा
|
|
दोनोः
|
कहा
दो
दिलों
ने,
की
होंगे
न
मिल
कर,
कभी
हम जुदा
|
दोघेः
|
म्हणाली
मने दोन,
की
विलगू न आम्ही,
एक
होऊन पुन्हा
|
|
दोनोः
|
ये
रातें,
ये
मौसम,
नदी
का किनारा,
ये
चंचल हवा
|
दोघेः
|
या
रात्री,
हा
मौसम,
नदीचा
किनारा,
ही
चंचल हवा
|
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अन् मुक्यांना नेमके संवाद द्या
जीव कासावीस झाला आमुचा
मूळचे नाही तरी अनुवाद द्या
कालची आश्वासने गेली कुठे?
ते पुन्हा येतील त्यांना याद द्या
वेगळे काही कशाला ऐकवा?
त्याच त्या कविताच सालाबाद द्या
एवढा बहिरेपणा नाही बरा,
हाक कोणीही दिली तर साद द्या
गोरगरिबांना कशाला भाकरी?
गोरगरिबांना अता उन्माद द्या
व्हायचे सैतान हे डोके रिते,
त्यास काही छंद लावा नाद द्या
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