मूळ हिंदी गीत: साहिर लुधियानवी, संगीत: रवी, गायक: आशा,
महेंद्र कपूर, रफी
चित्रपट: काजल, साल: १९६५, भूमिका: धर्मेंद्र, मीना कुमारी,
राज कुमार, मुमताझ
मराठी अनुवाद: नरेंद्र गोळे २०१३०७३०
॥
प्र
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प्राणी अपने प्रभु
से पूछे
किस विधी पाऊँ तोहे
प्रभू कहे तू मन
को पा ले,
पा जायेगा मोहे
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प्राणी आपल्या प्रभुसी पूसे
पावशील मज कैसा
ईश्वर सांगे वश करी मना
पावशील मज मनसा |
॥
धृ
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तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों
को,
देखे और दिखाये
तोरा मन दर्पण कहलाये
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तुझे मन दर्पण जणू होय
भल्या बुर्या सार्या कर्मांना
दाखवे आणि पाहे
तुझे मन दर्पण जणू होय
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॥
१
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मन ही देवता,
मन ही ईश्वर,
मन से बड़ा न कोय
मन उजियारा जब जब
फैले,
जग उजियारा होय
इस उजले दर्पण पर
प्राणी, धूल न जमने पाये
|
मनची देवता, मनची ईश्वर,
त्याहून थोर ना कोण
जव जव मनीचा प्रकाश उजळे
विश्व प्रकाशित होय
ह्या उज्ज्वल आरशावर
प्राण्या धूळ बसू ना जाय
|
॥
२
॥
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सुख की कलियाँ,
दुख के कांटे,
मन सबका आधार
मन से कोई बात छुपे
ना,
मन के नैन हज़ार
जग से चाहे भाग ले
कोई,
मन से भाग न पाये
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कळ्या सुखाच्या काटे दुःखमय
मन सगळ्यां आधार
मनापासुनी लपे न काही
मनास नेत्र हजार
पळा कितीही जगापासुनी
न शक्य पळ, मनठाय
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॥
३
॥
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तन की दौलत ढलती
छाया
मन का धन अनमोल
तन के कारण मन के
धन को
मत माटि में रौंद
मन की कदर भुलानेवाला
वीराँ जनम गवाये
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शरीरसंपदा ढळती सावली
मन-संपत्ती अपार
शरीरासाठी नको मनाला
देवू मातीत ठाय
मनाची महती विसरे जो तो
जन्म व्यर्थ करू जाय
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हातची राखून द्या पण दाद द्या
आंधळ्यांची दिव्यदृष्टी व्हा तुम्ही
अन् मुक्यांना नेमके संवाद द्या
जीव कासावीस झाला आमुचा
मूळचे नाही तरी अनुवाद द्या
कालची आश्वासने गेली कुठे?
ते पुन्हा येतील त्यांना याद द्या
वेगळे काही कशाला ऐकवा?
त्याच त्या कविताच सालाबाद द्या
एवढा बहिरेपणा नाही बरा,
हाक कोणीही दिली तर साद द्या
गोरगरिबांना कशाला भाकरी?
गोरगरिबांना अता उन्माद द्या
व्हायचे सैतान हे डोके रिते,
त्यास काही छंद लावा नाद द्या
- नामानिराळा, मनोगत डॉट कॉम २००५०६१४
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