मूळ
हिंदी गीतकारः मजरूह, संगीतः रोशन, गायकः रफी, सुमन
कल्याणपूर
चित्रपटः
ममता, सालः १९६६, भूमिकाः सुचित्रा सेन, अशोक
कुमार, धर्मेंद्र
मराठी
अनुवादः नरेंद्र गोळे २००७१२०२
धृ
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रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
बन के सबा बाग़े वफ़ा में
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असू ना असू पण, दरवळत राहू होऊन कळी, लेवून बहर प्रीत उपवनी
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१
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मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे इन फ़िज़ा में चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों से उड़ेगी, खिज़ा हो या बहारें यूँही झूमते, युहीँ झूमते और, खिलते
रहेंगे
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कुठलाही ऋतू हो, उपवनी ह्या रंग होऊन वसू या, ह्या बहारीत ओढीचा दरवळ, स्वैर पसरेल केसांतून या, या बहारीत, एरव्हीही असे बागडूया, असे बागडूया आणखी फुलूया
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२
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खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको गुंचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है, याद हमको इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे
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हरवलो असे की, काय भेटही अन् विरह काय, हे न ठाऊक परिघी मनाच्या आल्यापासून रंगभूमी मनाची
फक्त ठाऊक या रंगभूवर, या रंगभूवर अभिव्यक्त होऊ
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३
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जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम, तुमसे
मिलेंगे
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राहिन न मी, तू तेव्हा माझ्या ये चिर्याशी फिरता फिरता अश्रुंत भिजल्या चांदण्यातून साद श्रवशील फिरता फिरता कुठेशी तिथे, कुठेशी तिथे भेटेन तुज मी
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४
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सुमन: है खूबसूरत ये नज़ारे ये बहारें हमारे दम-क़दम से रफ़ी: ज़िंदा हुई है फिर जहाँ में आज इश्क़-ओ-वफ़ा की रस्म हम से दोनों: यूँही इस चमन यूँही इस चमन की ज़ीनत रहेंगे
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सुमन: खुलताती सुंदर देखावे
हे हे बहरही, आपल्या वावराने रफ़ी: आपल्यामुळेची पुनर्जीवित प्रथा आहे प्रेमालापाची दोघे: उपवनी इथे ह्या उपवनी इथे ह्या तळपतच राहू
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