२०१३-१२-२६

गीतानुवाद-०२५: है बहार-ए-बाग-ए-दुनिया चंद रोज

मूळ हिंदी गीतः राजिंदर क्रिशन, संगीतः रवी, गायकः महंमद रफी
चित्रपटः बम्बई का चोर, सालः १९६२, भूमिकाः किशोरकुमार

मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २००७०१२३





है बहार-ए-बाग-ए-दुनिया चंद रोज
दुनियेतल्या उपवनी बहर हा चार दिन

॥धृ॥
है बहार-ए-बाग-ए-दुनिया चंद रोज
देख लो इसका तमाशा चंद रोज
दुनियेतल्या उपवनी बहर हा चार दिन
पाहून घ्या ह्याची करामत चार दिन

॥१॥
लाख दारा और सिकंदर हो गये
आज बोलो वो कहाँ सब खो गये
आयी हिचकी मौत की और सो गये
हर किसी का है बसेरा चंद रोज
लाख दारा अन् सिकंदर प्रकटले
आज सांगा, सर्व ते गेले कुठे
उचकी आली मृत्यूची अन् संपले
हरेकाचा हा निवारा चार दिन

॥२॥
कल तलक रंगीं बहारे थी यहाँ
आज कब रोके यहाँ देखे निशाँ
रंग बदले हर घडी ये आसमाँ
ऐसी गम जो कुछ भी देखा चंद रोज
कालवर रंगीत बहार होती इथे
आज कुठवर रडत पाहू त्या खुणा
रंग हे आकाश बदले हर घडी
दु:ख ऐसे, पाहता दो चार दिन

क्या मिलेगा दिल किसी को तोड के
ले दुआ टुटे दिलों को जोड के
जा मगर कुछ याद अपनी छोड के
हो तेरा दुनिया में चर्चा चंद रोज
लाभ  कुठला मोडुनी मन कुणाचे
तुटल्या जिवांना जोड तू,  अन् घे दुवा
जा! परंतु सोड काही याद आपली
होवो तुझी दुनियेत चर्चा चार दिन