हर देश में तू, हर वेश में तू
तुकडोजी महाराज
मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २०१२०७३१
हर देश में तू, हर वेश में तू
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हर देशीही तू, हर वेशीही तू
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॥१ ॥
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हर देश में तू, हर वेश में तू
तेरे नाम अनेक, तू एक ही है
तेरी रंगभूमी, यह विश्व धरा
सब खेल में, मेल में, तू ही तू है
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हर देशीही तू, हर वेशीही तू
रूपात हरेक, असशी परी तू
तुझी रंगभूमी, ही सृष्टी जरी
खेळांतही तू, मेळांतही तू
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॥२॥
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सागर से उठा, बादल बनकर
बादल से गिरा, जल हो कर के
फिर नहर बना, नदिया गहरि
तेरे भिन्न प्रकार, तू एक ही है
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सागरी उठशी, मेघांतूनी तू
पर्जन्य झरशी, जल होऊन तू
मग झर, निर्झर, नदी होशी
प्रकार अनेक, जलाशय तू
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॥३॥
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मिट्ठी से ही अणु, परमाणु बना
इस जीव जगत का, रूप लिया
कहीं पर्वत, वृक्ष विशाल बना
सौन्दर्य तेरा, तू एक ही है
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घडला मातीतुनी, अणुरेणू
रूप जीवसृष्टीचे, शाश्वत तू
पर्वत कधी, विशाल तरूही तू
कौतूक तुझे, सत् एकची तू
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॥४॥
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यह दिव्य दिखाया, है जिसने
यह है गुरूदेवकी, पूर्ण दया
तुकड्या कहे, कोई न और दुजा
बस मैं और तू, सब एक ही है
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दाविशी दिव्य, जरी हे तू
गुरूदेव दयाघन, प्रसन्न तू
तुकड्या सांगे, परका न कुणी
एकच सगळे जण, मी आणि तू
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