मूळ उर्दू गीतकार: मिर्ज़ा ग़ालिब
गायक: जगजित सिंग / अबिदा परवीन
मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २०१६१२३१
॥
धृ
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हज़ारों ख्वाहिशें
ऐसी की
हर ख्वाहिश पे दम
निकले
बहुत निकले मेरे
अरमान
लेकिन फिर भी कम
निकले
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हजारो ईप्सिते ऐसी,
उधळावे प्राण ज्यांवरती
उसळल्या कितीक आकांक्षा,
परी त्याही कमी ठरती
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॥
१
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मोहब्बत में नहीं
हैं फ़र्क़
जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते
हैं
जिस काफ़िर पे दम
निकले
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उरत नाही प्रीतीत मुळी,
भेद जगण्या नी मरण्यातही
तिला पाहून जगतो मी,
वाहिले प्राण जिच्यावरती
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॥
२
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डरे क्यों मेरा
क़ातिल,
क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून, जो
चश्म-ए-तर से
उम्र भर यूँ दम-ब-दम
निकले
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कशाला भय हवे मारेकर्या,
मुंडी धडावर राहिलही का?
रक्त जे ओघळे आयुष्यभर,
श्वासागणिक, तयाकरता
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॥
३
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निकलना खुल्द से आदम
का
सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर
तेरे कुचे से हम
निकले
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ऐकले खूप स्वर्गातून की,
निष्कासीत मनू झाला
अनादर त्याहूनही माझा,
तुझ्या दारी असे झाला
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॥
४
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हुई जिनसे तवक्को
खस्तगी की दाद पाने
की
वो हमसे भी ज्यादा
ख़स्त-ए-तेघ-ए-सितम
निकले
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अपेक्षा ज्यांकडूनी मला,
राहिली दाद मिळण्याची
माझ्याहूनही अधिक
घायाळ ठरले जुल्मी घावांनी
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॥
५
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खुदा के वास्ते परदा
ना
काबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो याँ
भी
वही काफ़िर सनम
निकले
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ईश्वरासाठी खला, उचलू नको,
काब्यावरील पडदा
न जाणो गूढ आकळता,
तिथे प्रियतमच असे उरला
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॥
६
॥
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कहाँ मयखाने का
दरवाज़ा
'ग़ालिब'
और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं
कल वो जाता था के हम
निकले
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कुठे मदिरालयाचे द्वार अन्
कुठे गुरूजी, अरे गालिब
तिथे ते काल गेलेले,
आज मी, सत्य हे एवढे माहित
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