मूळ हिंदी गीतकार: साहिर लुधियानवी, संगीतः रवी, गयक: रफी, लता
चित्रपटः दो कलियाँ, सालः १९६८, भूमिकाः विश्वजीत, माला सिन्हा, नितू सिंग
मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २००७१०१०
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धृ
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रफी
तुम्हारी नज़र क्यों खफ़ा हो गई?
खता बख्श दो गर खता हो गई
लता
हमारा इरादा तो कुछ भी न था
तुम्हारी खता खुद सज़ा हो गई
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रफी
कशाला नजर वद तुझी
कोपली?
क्षमा कर मला जर
चुकी जाहली
लता
न माझ्या मनी हेतू
कुठलाही होता
कुरापत तुझीच तुज
सज़ा जाहली
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१
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रफी
सज़ा ही सही आज कुछ तो मिला है
सज़ा में भी इक प्यार का सिलसिला है
मोहब्बत का कुछ भी अन्जाम हो
मुलाक़ात ही इल्तजा हो गई
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रफी
सज़ा तर सजा, ती मला लाभली
सजेतही कथा
प्रीतीची व्यक्त झाली
परिणाम जो व्हायचा
तोच होवो
सुरूवात ह्या
हितगुजानेच झाली
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२
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लता
मुलाक़ात पे इतने मगरूर क्यों हो
हमारी खुशामद पे मजबूर क्यों हो
मनाने की आदत कहां पड़ गई
खताओं की तालीम क्या हो गई
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लता
कशाला हवी ऐट ही
बोलण्याची
निकड का तुला
भासली आर्जवांची
सवय लागली ही कधी
आर्जवांची
कुठे शिकवणी गेली
भंडावण्याची
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३
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रफी
सताते न हम तो मनाते ही कैसे
तुम्हें अपने नज़दीक लाते ही कैसे
किसी दिन की चाहत अमानत ये थी
वो आज दिल की आवाज़ हो गई
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रफी
सतावता न जर तर
कसा विनवता मी जवळिक तुझ्याशी कसा साधता मी
मनीषा मनी ह्या
दिसाचीच होती मनोप्रार्थना साधली आजला ती
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४
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लता
सजा कुछ भी दो पर, खता तो बता दो
मेरी बेगुनाही का, कुछ तो सिला दो
मेरे दिल के मालिक, मेरे देवता
बस अब जुल्म की, इम्तिहाँ, हो गई
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लता
सजा दे, परी अपराध सांग
माझा
निष्पाप मी, ते मला श्रेय दे
ना
मनोस्वामी तू, तू माझी देवता
पुरे क्लेश हे, सोसती हे न आता
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