२०१७-११-२२

गीतानुवाद-१०१: सौ बार जनम लेंगे

मूळ हिंदी गीतः असद भोपाली, संगीतः रवी, गायकः मोहम्मद रफी
चित्रपटः उस्तादों के उस्ताद, सालः १९६३, भूमिकाः प्रदीप कुमार, शकीला, अशोक कुमार

मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २०१७०३०४

प्र
स्ता
वफ़ा के दीप जलाए हुए निगाहों में
भटक रही हो भला क्यों उदास राहों में
तुम्हें ख्याल है तुम मुझसे दूर हो लेकिन
मैं सामने हूँ, चली आओ मेरी धुन में

प्रीतीचे दीप उजळून डोळ्यांत तू
भटकसी उदास पथी का अशी उगाच तू
जरी समजसी तू दूर मला, तरीही
मी इथेच आहे, निघून ये तू आस धरून
धृ
सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे
ऐ जाने वफ़ा फिर भी हम तुम ना जुदा होंगे

शंभरदा प्रकट होऊ, शंभरदा मरून जाऊ
हे प्रिय सखे तरीही, आम्ही न विलग होऊ
किस्मत हमें मिलने से रोकेगी भला कब तक
इन प्यार की राहों में भटकेगी वफ़ा कब तक
कदमों के निशाँ खुद ही मंजिल का पता होंगे

दैवही बरे आपल्याला, रोखेल तरी कुठवर
प्रेमाच्या पथी प्रीती, भटकेल तरी कुठवर
पदचिन्ह स्वतः देतील, गंतव्यचिन्ह पाहू
ये कैसी उदासी है, जो हुस्न पे छाई है
हम दूर नहीं तुमसे, कहने को जुदाई है
अरमान भरे दो दिल, फिर एक जगह होंगे

कशी आहे उदासी ही, रूपास जी झाकोळी
प्रत्यक्ष दुरावा असून, मी दूर मुळीच नाही
आसावली दोन मने, एकत्र पुन्हा राहू