२०१२-०५-०२

आभासी उपकरणन-१


आभासी उपकरणन (व्हर्च्युअल इन्स्ट्रुमेंटेशन)
नरेंद्र गोळे २००५१२११ (पूर्वप्रसिद्धी मनोगत डॉट कॉम)
(डॉ.होमी भाभा विज्ञान लेख प्रतियोगिता-२००३, ह्या हिंदी विज्ञान साहित्य परिषदेच्या स्पर्धेतील, माझ्या 'उत्तेजनार्थ पारितोषक' प्राप्त लेखाचा, हा मराठी अनुवाद आहे.  ह्या मूळ प्रदीर्घ लेखाचे तीन भाग करीत आहे. पहिल्या भागात तंत्रविषयाची ओळख. दुसर्‍यात पारिभाषिक शब्द व त्यांचे अर्थ. आणि तिसर्‍या भागात कार्यप्रणालीचे उदाहरण देत आहे.)
सारांश
स्वीय-संगणनात झालेल्या क्रांतीमुळे  उपकरणन आणि नियंत्रण  हे सशक्त, गतिमान आणि परिवर्तनक्षम झाले आहे. स्वीय-संगणक-निर्भर माहिती-अधिग्रहण, एक वेगानी उदयास येणारे क्षेत्र गणले जात आहे. विशेषत: प्रक्रिया उपकरणनाच्या संदर्भात. कोणत्याही क्षेत्रात कार्यरत असणारे वैज्ञानिक व अभियंते, आज स्वीय-संगणक-निर्भर, माहिती-अधिग्रहणात रुची राखतात. प्रक्रिया उपकरणनात पर्यवेक्षी नियंत्रण व माहिती-अधिग्रहण कार्यप्रणालीं (पनिवमा कार्यप्रणाली - सुपर्वायझरी कंट्रोल ऍन्ड डाटा ऍक्विझिशन - स्काडा सॉफ्टवेअर) मुळे माहितीच्या सादरीकरणाचे अनेकानेक आकृतीबंध आज उपलब्ध आहेत. ह्यापूर्वी अशाच कामासाठी अनेक उपकरणे लागत असत. जेंव्हा संवेदक (सेन्सर्स), संकेत स्थितिनिवारक (सिग्नल कंडिशनर्स), निरंतर-अंकित प्रवर्तक (अनालॉग-डिजिटल-कन्व्हर्टर्स), आणि चयनक (मल्टिप्लेक्सर्स) आजही आवश्यक असतात; तेंव्हा ग्राहक उपकरणांचे (रिसिव्हिंग इन्स्ट्रुमेंटस) काम, माहिती-अधिग्रहण-कार्यप्रणालींनी सांभाळलेले आहे. या कार्यप्रणाली, सर्व इच्छित आकृतिबंधांमध्ये अधिगृहित माहिती, यथाकाल (रिअल टाईम) सादर करू शकतात. याशिवाय, या कार्यप्रणालींना, इप्सित सर्व दृक-श्राव्य परिणाम साध्य करण्यासाठी विकसित केले जाऊ शकते.
सर्वसामान्य व्यक्तीला या तथ्यांचा पत्ताही लागला नसता. पण संयंत्रांच्या दृक-श्राव्य फितींमधून (ऑडिओ-व्हिजुअल टेप्समधून) आजकाल होत असलेल्या ओळखींमधून परिवर्तनाचा अंदाज करता येतो. पारंपारिक नियंत्रण कक्षात दिसून येणारी नियंत्रण पटले आधुनिक नियंत्रण कक्षात दिसत नाहीत. जे संयंत्र अनेक चालक मोठया प्रयासाने सांभाळत असत ते आज एकच चालक सहज सांभाळतांना दिसतो. क्रिकेट कसोटी दरम्यान जसा एकच समालोचक खेळाची सर्व माहिती दूरदर्शन वर दर्शकांना दाखवतो, ठीक त्याचप्रमाणे संयंत्र चालक, संयंत्रस्थितीची समग्र माहिती व्यवस्थापनास देऊ शकतो. ह्या परिवर्तनाचे रहस्य `आभासी उपकरणन'  आहे.
ह्या खास तंत्रज्ञानाचे स्वरूप, आम माणसापर्यंत नेण्याचा प्रयत्न, इथे केलेला आहे. ह्या लेखात आभासी उपकरणनाची संकल्पना, यातील आधारभूत संगणक सामग्री (हार्डवेअर), कार्यप्रणाली (सॉफ्टवेअर), ह्यांचा उहापोह केलेला आहे. सामान्य माणसाच्या जिज्ञासेचे समाधान होईल आणि त्याला आभासी उपकरणनाबाबत प्राथमिक माहिती मिळेल, ह्या उद्देश्याने हा लेख लिहिलेला आहे. आशा आहे की तो वाचकांना आवडेल.
परिशिष्टांत इंग्रजी शब्द आणि त्यांचेसाठी या लेखात वापरलेले मराठी प्रतिशब्द, दिलेले आहेत. बव्हंश औद्योगिक शब्द, `शाब्दिका' नामक अधिकृत शब्दसंग्रहातून घेतलेल्या हिंदी प्रतिशब्दांच्या आधारे बनवलेले आहेत. जिथे जिथे गरज भासली, तिथे तिथे या लेखातही मूळ इंग्रजी शब्द जसेच्या तसे उद्धृत केलेले आहेत. यामुळे लेखाची वाचनीयता अस्खलित जरी राहिली नाही तरी, आकलनसुलभ जरूर होईल.
उपकरणन अभियांत्रिकी: एक आधुनिक विज्ञान शाखा
उपकरणन अभियांत्रिकी ही विज्ञानाची अशी शाखा आहे जिच्यात प्रक्रिया-नियंत्रणासाठी, प्रक्रिया-स्थिति-सूचनांचे अधिग्रहण, संग्रहण, संस्करण आणि प्रक्रिया नियंत्रकासाठी आकलनसुलभ प्रस्तुती केली जाते. विद्युत अभियांत्रिकीतून उत्पन्न झालेल्या या विद्याशाखेने थोडयाच अवधीत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त केले आहे. विद्युत अभियांत्रिकी सगळ्यात जुन्या विद्याशाखांमधील एक आहे. पण उपकरणन अभियांत्रिकी मागील ३०-४० वर्षात उदयमान झाली आहे. उपकरण, प्रक्रिया-स्थिति-माहिती चे संवेदन करून, प्रक्रिया चालकास स्थितिशी अवगत करते. उदाहरणच द्यायचं झालं तर डॉक्टरच्या तापमापकाचे देता येईल. गोलाकार मापनपट्टीवर सुईने माप दाखवणारा दाब मापकही आपल्या ओळखीचाच आहे.
आभासी उपकरणन: उपकरणन अभियांत्रिकी चा नवा अवतार
संयंत्रांमधून विभिन्न चलांची माहिती घेण्यासाठी अशी अनेक उपकरणे लागतात. त्यांना उचित उंचीवर आकलनसुलभ आकृतीबंधात स्थापित करुन नियंत्रण पटलांची निर्मिती केली जाते. अशी अनेक नियंत्रण पटले असतात. त्यामुळे अनेक चालकांची गरज पडते. अजस्त्र आणि क्लिष्ट संयंत्रांचे नियंत्रण अनेक चालकांच्या असण्यामुळे कठीण होते. तुलनेत, एकचालकानुवर्ती संयंत्रे सहज काबूत येतात. मोठ्या संयंत्रांनाही एकचालकानुवर्ती बनवता येतं. या दृष्टीने नियंत्रण पटलांऐवजी संगणकाच्या पडद्यावर सार्‍या संयंत्राचे आकलन साकार करणार्‍या नव्या तंत्रालाच 'आभासी उपकरणन' म्हणतात. संगणाकाच्या पडद्यावर आळीपाळीने वेगवेगळ्या उपकरणांचा आभास निर्माण केला जातो. त्या त्या उपकरणांमध्ये सामान्यत: उपलब्ध असणार्‍या सर्व सोयी व नियंत्रणे आभासी उपकरणामध्येही उपलब्ध केली जातात. त्या, उपकरणांमध्ये परंपरेने असणार्‍या नियंत्रणांना, कुंजीपट अथवा मूषकाद्वारे उपलब्ध केले जाते. संगणकाच्या पडद्यावर पारंपारिक उपकरण तयार करण्याच्या आणि वापरण्याच्या संकल्पनेतूनच 'आभासी उपकरणनाचा' जन्म झालेला आहे.

मूळ लेखाची प्रत खाली देत आहे!

आभासी उपकरणन

 नरेंद्र गोले

वैज्ञानिक अधिकारी, अणुभट्टी सुरक्षा प्रभाग, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, ४०८ हॉल-७, ट्रॉम्बे, मुंबई ४०००८५

दूरध्वनि: ०२२-२५५९३८५५,  ई-मेल: nvgole@apsara.barc.ernet.in

सारांश

स्वीय-संगणन में हुई क्रांति से `उपकरणन एवं नियंत्रण` ताकतवर, गतिमान एवं परिवर्तनक्षम हुए हैं। स्वीय-संगणक-निर्भर सूचना-अधिग्रहण, एक तेजी से उभरता क्षेत्र महसूस होने लगा है। विशेषत: प्रक्रिया उपकरणन के संदर्भ में। किसी भी क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिक तथा अभियंता, आज स्वीय-संगणक-निर्भर सूचना-अधिग्रहण में रुचि रखते हैं। प्रक्रिया उपकरणन में पर्यवेक्षी नियंत्रण व डाटा-अधिग्रहण कार्यप्रणालियों(पनिवडा कार्यप्रणालियों - Supervisory Control And Data Acquisition- SCADA Software) की बदौलत डाटा पेशकश के अनेकानेक आकृतिबंध आज उपलब्ध हैं। इससे पहले, इसी काम के लिये ढेर सारे उपकरणों की जरुरत पडती थी। जब कि संवेदक (Sensors), संकेत स्थितिसवारक (Signal Conditioners), निरंतर-अंकित प्रवर्तक (Analog-Digital-Converters) और चयनक (Multiplexers) आज भी आवश्यक होते हैं; ग्राहक उपकरणों का (Receiving Instruments) काम, डाटा-अधिग्रहण-कार्यप्रणालियों ने सम्हाला हैं। ये कार्यप्रणालियाँ, सारे इच्छित आकृतिबंधो में अधिगृहित सूचनाओं की पेशकश, यथासमय (Real Time) कर सकती हैं। इसके अलावा, इन कार्यप्रणालियों को, इप्सित सभी दृक-श्राव्य परिणामों को साध्य करने के लिये विकसित किया जा सकता हैं।

आम व्यक्ति को इन तथ्यों का शायद पता ही नही चलता। लेकिन संयंत्रों के दृक-श्राव्य फितों (Audio-Visual Tapes) में आजकल हो रहे दर्शनों से परिवर्तन का अंदाजा किया जा सकता हैं। पारंपारिक नियंत्रण कक्ष में दिखाई देनेवाले नियंत्रण पटल आधुनिक नियंत्रण कक्ष में नही दिखेंगे। जो संयंत्र अनेक चालक बडी मुश्किलसे सम्हालते थे, वह अब एक ही चालक आसानी से सम्हालता दिखाई देगा। क्रिकेट कसौटी के दरम्यान जिस तरह एक ही समालोचक खेल का सारा ब्यौरा दूरदर्शन पर दर्शकों को दिखाता है, ठीक उसी तरह संयंत्र चालक, संयंत्र के स्थिति का सारा ब्यौरा व्यवस्थापन को दे पाएगा। इस परिवर्तन का राज `आभासी उपकरणन` हैं।

इस तंत्रज्ञान के  खास स्वरूप को, आम व्यक्ति को समझाने का प्रयास किया गया है।  इस लेख में आभासी उपकरणन की संकल्पना, इसकी आधारभूत संगणक सामग्री (Hardware), कार्यप्रणालि (Software), खासियत और उपलब्धियों को प्रस्तुत किया गया हैं। सामान्य व्यक्ति कीं जिज्ञासा का समाधान हो और उसे आभासी उपकरणन की प्राथमिक जानकारी मिले, इस उद्देश्य से यह लेख लिखा गया है। आशा है कि पाठक इसे पसंद करेंगे।

अंत में एक परिशिष्ट में अंग्रेजी शब्द और उनके लिये इस लेख में प्रयोग किये गये हिंदी प्रतिशब्द, तालिका के रूप में दिये हैं। बव्हंश प्रौद्योगिकी शब्द, http://www.tdil.mit.gov.in इस साईट पर उपलब्ध `शब्दिका' नामक अधिकृत शब्दसंग्रह से लिये गये हैं। जहाँ-जहाँ जरुरत महसूस की वहाँ-वहाँ, लेख के अंदर भी मूल अंग्रेजी शब्दोंको उत्घृत किया है। इससे लेख की वाचनियता अस्खलित भले ही न रहे, पर आकलनसुलभ जरूर होगी।

उपकरणन अभियांत्रिकी: एक आधुनिक विज्ञान शाखा

उपकरणन अभियांत्रिकी विज्ञान की ऐसी शाखा है,  जिसमें प्रक्रिया-नियंत्रण हेतु प्रक्रिया-स्थिति-सूचनाओं का अधिग्रहण, संग्रहण, संस्करण और प्रक्रिया नियंत्रक के लिये आकलनसुलभ पेशकश की जाती है। विद्युत अभियांत्रिकी से उत्पन्न हुई इस विद्याशाखा ने थोड़े ही समय में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। विद्युत अभियांत्रिकी सबसे पुरानी विद्याशाखाओं में से एक है। लेकिन उपकरणन अभियांत्रिकी पिछले ३०-४० सालों में ख्याति प्राप्त हुआ है। उपकरण, प्रक्रिया-स्थिति-सूचना का संवेदन कर, प्रक्रिया चालक को स्थिति से अवगत कराता है। उदाहरण के तौर पर डाक्टर के तापमापी का नाम लिया जा सकता है। गोलाकार मापनपट्टी पर सुई से नाप दिखानेवाली दाबमापी भी काफी विख्यात  है।

आभासी उपकरणन: उपकरणन अभियांत्रिकी का नया अवतार

संयंत्रों में विभिन्न चलों का जायजा लेने के लिये ऐसे अनेक उपकरणों की आवश्यकता होती है। इन्हे समुचित उँचाई पर आकलनसुलभ आकृतिबंध में स्थापित कर, नियंत्रण पटलों का निर्माण किया जाता है। ऐसे अनेक नियंत्रण पटलों के होने से कई चालकों की जरुरत पडती है। अजस्त्र एवं क्लिष्ट संयंत्रों का नियंत्रण अनेक चालकों के होने से कठिन होता  है। तुलना में, एकचालकानुवर्ती संयंत्र सहज काबू में आते हैं। बड़े संयंत्रों को भी एकचालकानुवर्ती बनाया जा सकता  है। इस दृष्टि से नियंत्रण पटलों की जगह संगणक परदे पर सारे संयंत्र का आकलन कराने वाले नये तंत्र को `आभासी उपकरणन` कहते है। संगणक परदे पर अलग-अलग उपकरणों का, बारी-बारी से, हूबहू आभास कराते है। उन उपकरणों में होनेवाली हर पेशकश और हर नियंत्रण का आभासी उपकरण में भी समायोजन किया जाता है। उन उपकरणों में, जो नियंत्रक परंपरा से रहते है, उन्हे आभासी उपकरणों में भी माऊस या कुंजीपट के जरिये उपलब्ध किया जाता है। संगणकीय परदों पर पारंपारिक उपकरण बनाने की और इस्तमाल करने की संकल्पना से ही `आभासी उपकरणन` का जन्म हुआ है।

आभासी उपकरणन की संकल्पना

आजकल निरंतर संकेतों के मुकाबले अंकित संकेत बेहतर माने जाते हैं, इसके दो कारण है। एक तो दर्शन कि दृष्टि से सापेक्षपृथकता (Resolution), और दूसरा संस्करण सुविधा। निरंतर संकेतों की सापेक्षपृथकता सीमित होती है। जैसे कि एक दशलक्षांश सापेक्षपृथकता के लिये एक किलोमीटर लंबे मापनपट्टी की जरुरत होती है। जब कि छ: अंकोवाले अंकित-संकेत-दर्शक इसे आसानी से, छ: सेंटीमीटर जगह में दिखा सकते है। हाल ही में उपलब्ध दृतगति (Fast),  कार्यक्षम (Efficient) और यथातथ्य (Accurate) संस्करण क्षमता के कारण अंकित संकेतों का उपयोग और भी सुलभ हुआ है। इसके अलावा, आवृत्ति-जनक (Frequency-output)  संवेदकों का (जैसे: भंवरनिर्भर प्रवाह मापी- Vortex Flow Meter) विकास भी अंकित संकेतों के पक्ष मे रहा है। पारंपारिक उपकरण, मूलत: छ: अलग-अलग प्रकार से अधिगृहित सूचनाओं का दर्शन या नियंत्रण, चालक को उपलब्ध कराते है। वे हैं:

१.    निरंतर संकेत दर्शक, अंकित संकेत दर्शक, अंकदर्शक

२.    य-क्ष आरेखक, य-समय आरेखक, पट्टरूप आरेखक (Strip Chart Recorder), गोलाकार आरेखक

३.    चालू-बंद निदर्शक, मापनसीमापार लक्षवेधक (Alarm Indicator), स्थितिनिदर्शक (Status Indicators)

४.    सूचनासूची (Data Lists), सूचना तालिका (Data Tables)

५.    आडे या खडे दंडदर्शक (Bar Type Indicators), गोलाकार हिस्सा दर्शक (Pie Type Indicators)

६.    नियंत्रण खूटियाँ (Control Knobs), दाबकलें (Push Buttons), खटकें (Switches), अविरत चक्रनियंत्रक (Continuous Rotating Knobs), अंगुठावर्ति चक्र (Thumb Wheel)

यह सारे प्रकार संगणक परदे पर आसानी से साकार किये जा सकते हैं। इसलिये प्राय: सारे उपकरण, संगणकों पर साकार हो सकते हैं।

उपर, एक आकृतिकल्पन (Configuration) दिया हैं। इस में एक सर्वसाधारण, औद्योगिक-स्वीय-संगणन-चलित पर्यवेक्षी नियंत्रण एवं डाटा अधिग्रहण प्रणालि दिखाई गई हैं। ३२ संवेदकों से प्राप्त होने वाले संकेत, एक तारांतक (Termination) पर लाये जाते हैं। ऐसे चार तारांतकों को चार अलग अलग मोड्यूलों से जोडा गया हैं। चार चार चयनक मोड्यूलें एक एक डिबों में दिखाई गई हैं। ऐसे दो डिब्बे, ६८ छडों वाले तारगुच्छों से, एकसर जोडे हैं। और उसी तारगुच्छ के जरिये, औद्योगिक-स्वीय-संगणक से जोडे गये हैं। औद्योगिक-स्वीय-संगणक, र्वाधत तापमान पर, अविरत चलने की क्षमता रखते हैं। वे औद्योगिक स्पंदनों से अबाधित रखे जाते हैं। इन्हे धूल और प्रदूषणों से मुक्त रखने के लिये और शीतन के लिये छलनी में से वायूवीजन की अलग व्यवस्था रहती हैं।  इसके अलावा ये साधारण स्वीय-संगणक ही होते हैं। आभासी उपकरणन की विविध कार्यप्रणालियाँ संगणक के जरिये, चयनक द्वारा, किसी भी एक समय पर, बारी बारी से, एक एक वाहिनी का चयन कर के, उसमे से प्राप्त हो रहे संकेतों का आकलन, अंकन तथा संग्रहण करने की क्षमता रखती हैं।

आभासी उपकरणन के लाभ

रचनासहज, संस्करणसुलभ, लचिला कार्यप्रणालि-लेखन और दोनों अक्षों में अधिगृहित अंतीम सूचना घटकतक दर्शन की विस्तार/संकोच सुलभता आभासी उपकरणन की प्रमुख उपलब्धियॉ हैं। आभासी उपकरणन चालक को संयंत्र का नियंत्रण कक्ष में सम्यक दर्शन कराता है। और, अधिगृहित सूचना का संस्करण सरल बनाता है।

खुली प्रणालि अनुबंध (Open System Inter-connect) आधुनिक विजकविद्या (Electronics) और उपकरणन का आवश्यक गुण है। खुली विशिष्टता की वजह से निर्माता अपनी पसंद का उपकरण बनाकर उसे फिर भी दूसरे निर्माताओं के उपकरणों से परस्परानुकुल (Compatible) रख सकता है। उपभोक्ता को परस्परपुरकता परखने की परेशानी से मुक्ति मिलती है। आभासी उपकरणन खुली प्रणालि अनुबंधों को अपनाता है। इसलिये आभासी उपकरणन में उपभोक्ता को मनचाही सामग्री और घटक प्रणालियों को अखंड नियंत्रण प्रणालि में ढालना मुमकिन होता है।

आभासी उपकरणन में चयनक (Multiplexer) और संकेत स्थितिसवारक (Conditioner) को संवेदक के पास रखते है। इसलिये सैंकडो चलोंकी संकेत-सूचनाए एक ही तारगुच्छ पर मुख्य संगणक तक लायी जा सकती है। परिणामत: संदेशवहन तारों का खर्चा काफी हद तक कम होता है।

इसके अलावा आभासी उपकरणन का और भी एक फायदा हो सकता है। वह है जंगम (Portable) नियंत्रण कक्ष। क्यों कि मुख्य संगणक जंगम है, विविध प्रयोगों की साधनसामग्री तैयार रखकर हर प्रयोग को मुख्य संगणक बारी बारी से जोडकर और उसमे संबंधित कार्यप्रणालियाँ चलाकर संशोधन संपन्न किया जा सकता है। इससे पारंपारिक ग्राहक उपकरणों पर होने वाली लागत बड़े पैमाने पर घटाई जा सकती है।

सूचना (Data, Information) - प्रवाह चित्रनिर्भर कार्यप्रणालि लेखन

किसी भी सामान्य संकेत-सूचना-अधिग्रहण वाहिनी के घटक होते हैं  संवेदक, संवर्धक, पारेषक, निरंतर-संकेत-अंकक और मुख्य संगणक। इन्हे पारंपारिक दृष्टि से घटक (Block) कहते है। सारी वाहिनी घटकों के सूचना-ग्रहण समयानुरूप यथास्थान जोडों द्वारा दिखाई जाती है। ऐसे मानचित्र को घटकचित्र (Block-Diagram) कहते है। घटकचित्र बनाना काफी आसान है। अगर वाहिनी का कार्यप्रणालि लेखन घटकचित्र बनाने जैसा सरल हो, तो उपभोक्ता स्वयम् इस काम को कर पाएगा और इसलिये किसी विशेष लेखक की जरुरत नही रहेगी। हालाकि इन घटकों की प्रणालि का लेखन विशेषज्ञ ही कर पाएंगे। इसलिये घटकों का प्रणालि लेखन विशेषज्ञ करते है, और घटकों से घटकचित्र बनाने का आसान काम उपभोक्ता, आवश्यकता के अनुरूप घटकों को जोडकर करते है।

सूचना-विनिमय-तारगुच्छ (Information Exchange Bus - सूविता)

अंकित संकेत संस्करण सुलभ होते हैं। सारे पारंपारिक उपकरण संगणक परदे पर साकार हो सकते हैं। लेकिन अगर संकेत अधिग्रहण या पारेषण दृतगति न होते तो आभासी उपकरणन सपना ही बनकर रह जाता। आज संकेत अधिग्रहण १००,००० एकक प्रति सेकंड और पारेषण १०० दशलक्ष एकक प्रति सेकंड गति से हो सकता है। इसलिये सैंकडो चलोंकी अद्यतन स्थितियाँ मुख्य संगणक के परदे पर एक साथ उपलब्ध होती हैं। जिससे आभासी उपकरणन शक्यप्राय हुआ है। इसका राज प्रगत `सूविता' है। जिनके होनेसे दृतगति पारेषण संभव हुआ है।

आभासी उपकरणन कार्यप्रणालिओं  का परिचय

प्राय: आभासी उपकरणन की सारी प्रणालियाँ रोमन लिपिमें ही लिखी जाती है। अत: संगणन परदों की जिन तस्वीरों को यहाँ पर दिखाया है, वह सारी रोमन लिपि में ही, जों की त्यों रखी है। लेकिन जो अतिरिक्त विवरण दिया है उसे देवनागरी मे लिखने की पूरी कोशिश की गई है।

लैबव्ह्यू-६.१ (LabVIEW-6.1: Laboratory Virtual Instrumentation Engineering Workbench अथवा प्रयोगशालेय आभासी उपकरणन-योग्य अभियांत्रिकी कार्यमंच-६.१) यह नेशनल इन्सट्रुमेंटस यु.एस.ए. द्वारा विकसित, उपभोक्तासुलभ, उपायोजन कार्यप्रणालि लेखन- योग्य विकसन- पर्यावरण (Development Environment) है। इसमें चित्रनिर्भर कार्यप्रणालि लेखन की वजह से सामान्य उपभोक्ताओं के  लिये, मापन और स्वयंचलन-उपायोजन प्रणालियों का लेखन, सुलभ हुआ है। लैबव्ह्यू, चौडी परास (Wide Range) साधन सामग्री व कार्यप्रणालियों का आकृतिकल्पन (Configuration) करने के लिये रुपकसाधन (Features) उपलब्ध कराता है। लैबव्ह्यू मे बनाई गई बुनियादी संचिका (File) `आभासी उपकरण' कहलाती है जिसका विस्तार होता है .vi, उदाहरणार्थ "basic.vi' । यह .vi विस्तारवाली संचिका लैबव्ह्यू में ही खुलती है।

इस प्रकार की संचिका के तीन आविष्कार होते है। एक `अग्रपटल', दुसरा `घटकचित्र' व तीसरा  `प्रकटनचिन्ह एवं संबंधन'। संचिका खोलने पर पहले दो आविष्कार संकलित एवं संपादित किये जा सकते हैं। तीसरा आविष्कार, यह संचिका जब दूसरी किसी संचिका में इस्तमाल की जाती है, तब उसके अंदर इसका अस्तित्व दिखाने के लिये उपयोग में लाते है। यह आकृति क्र.१ में दर्शाया गया है।

मुख्य प्रसूची पटिटका, अग्रपटल एवं घटकचित्र परदों पर शिरोरेखासी रहती है। इसमे विविध, रूपकों को उपलब्ध कराया जाता हैं। जिनके जरिये प्रणालिलेखन सुलभ होता है। इसे आकृति क्र.२ में दर्शाया गया है।

औजार तबक, अग्रपटल एवं घटकचित्र इन दोनो परदों पर हाजिर होता है। इसमे दस औजारों के प्रकटन चिन्ह दिखाई देते हैं। औजार, माऊस के सुई का एक विशेष कार्यकारी रूप होता है। सुई, चुने हुए औजार का प्रकटन चिन्ह धारण करती है। ये औजार अग्रपटल एवं घटकचित्रों के संपादन तथा कार्यप्रवण में काम आते है। यदि स्वयं औजार चुनना कार्यान्वित किया हो, और सुई घटकचित्र पर किसी वस्तु पर रखी तब, लैबव्ह्यू अपने आप औजार तबक में से संबंधित औजार चुन लेता है। हाथ के  जैसा दिखनेवाला पहला औजार पकड कर माऊस के जरिये, चलों का मूल्य बदला जा सकता  है।  तीरनुमा दुसरे औजार का उपयोग घटकचित्रों को चुनने के लिये होता है। ऋ जैसा दिखने वाला तीसरा औजार लिखित संदेशों का संपादन करने में काम आता है। चौथा औजार, तार के वलयों जैसा दिखता है। और इससे परस्परानुकुल घटकचित्रों को जोडा जाता हैं। इसी प्रकार से अन्य औजारों को भी समझ कर, अलग अलग तरीके से इस्तमाल करते है। औजार तबक आकृति क्र.३ में दर्शाया गया है।

अग्रपटल का निर्माण जरूरी नियंत्रक एवं दर्शकों को रखकर एवं जोड कर किया जाता है। नियंत्रक, अग्रपटल की एक वस्तु है जिसे कार्यान्वित कर उपभोक्ता आभासी उपकरण के साथ लेनदेन करता है। नियंत्रक के सरल उदाहरण है, खटके और लिखित संदेश। दर्शक, अग्रपटल की वह वस्तु है जो उपभोक्ता को दर्शाने का काम करती है। उदाहरणार्थ आरेखक, तापमापक और अन्य दर्शक। जब अग्रपटल पर नियंत्रक या दर्शक रखते है तब घटकचित्र पर संबंधित अंतक अपने आप दिखाई देते है। नियंत्रक तबक आकृति क्र.४ में दर्शाया गया है।

प्रकार्य तबक आकृति क्र.५ में दर्शाया गया है। अग्रपटल पर नियंत्रक या दर्शक रखने पर घटकचित्र में उनके जोड दिखाई देते है। उन्हे समुचित तारों से जोडकर घटकचित्र बनाया जाता है। घटकचित्र पर दूसरी अन्य .vi संचिकाए, प्रकार्यचित्र, ढाचें, प्रकार्य तबक से उठा कर रखे जा सकते है। और इन्हे भी घटकचित्र के उपर वाले अन्य सभी वस्तुओं के साथ समुचित तारों से जोडा जा सकता है। ढाचे, प्रकार्य और दुसरी अन्य .vi संचिकाए, प्रकार्य तबक पर रहनेवाले `केंद्रक' कहलाते है। ये केंद्रक इस तबक को प्रकार्य क्षमता दिलाते है। एक पूरा घटकचित्र, प्रवाहचित्र जैसा ही दिखता है।

अग्रपटल का निर्माण

अग्रपटल, .vi संचिका का उपभोक्ता के साथ समन्वय कराता है। अग्रपटल नियंत्रक और दर्शकों से बनता है, जो .vi संचिका के आवागमन द्वार होते है।  नियंत्रक; खुटियॉ, दाबकले और अन्य नियंत्रण-सूचना स्वीकार-साधनों के स्वरूप में होते है। दर्शक; आरेखक, प्रकाशोर्त्सजक एकदिशा-प्रवर्तक और अन्य दर्शन साधन होते है। नियंत्रक; नियंत्रण स्वीकार के साधन रूप होते है। और .vi संचिका के घटकचित्र को डाटा आपूर्ति करते है। दर्शक दर्शन-साधन रूप होते है। और वह डाटा दर्शाते है, जो घटकचित्र लेते या बनाते है। हर नियंत्रक या दर्शक को एक स्वल्प प्रसूची होती है। जो उसके अंदर की मदों को चुनने में या उनके स्वरूप बदलने में काम आती है। जब कोई नियंत्रक या दर्शक अग्रपटल पर रखा जाता है, संबंधित जोड घटकचित्र पर दिखने लगते है।

घटकचित्र का निर्माण

अग्रपटल निर्माण के बाद अग्रपटल पर स्थित वस्तुओं का नियंत्रण करने के लिये घटकचित्र पर प्रकार्य प्रकटनचित्र रखकर और उन्हे उनसे जोड कर प्रणालि को बढाया जा सकता है। जब कोई नियंत्रक या दर्शक अग्रपटल पर रखा जाता है, संबंधित जोड घटकचित्र पर दिखने लगते है।

उदाहरणस्वरूप सेल्शिअस से फ़ॅरनहीट प्रवर्तक आभासी उपकरण

समझ लिजिये कि हमे एक .vi संचिका बनानी है, जो तापमान को सेल्शिअस में स्वीकार कर फ़ॅरनहीट में प्रर्वातत कर दिखाती है। इसलिये अग्रपटल खोले, सेल्शिअस नियंत्रक और फ़ॅरनहीट दर्शकों को उस पर रख दे। यह आकृति क्र.६ में दर्शाया गया है। इन दोनों के जोड घटकचित्र पर दिखाई देते हैं। घटकचित्र पर प्रकार्य तबक से एक गुणक और एक समायोगक खींच लिजिये।

घटकचित्र पर ही इन सब वस्तुओं को आकृति क्र.७ में दिखाये हुए तरिके से जोडो। अभी अगर अग्रपटल पर जाकर यह प्रणालि चलायी, तो नियंत्रक पर लगाया हुआ आँकडा लेकर उसे प्रक्रमित कर फ़ॅरनहीट दर्शक पर दर्शाया जाता है। अब नियंत्रक में अलग अलग आँकडे डालकर दर्शक ठीक दिखाता है, यह परख लो। है न कितना आसान, एक `आभासी उपकरण' बनाना?

ऋ णनिर्देश

निरंतर प्रेरणा और प्रोत्साहन के लिये मै डा.सतिशकुमार गुप्ता का ऋणी हुँ। मै श्री.अभिषेक श्रीवास्तव का भी ऋणनिर्देश करना चाहूँगा, जिन्होने अपना अमूल्य समय निकाल कर, संपादकीय सुझाव दिये।

समारोप

आभासी उपकरणन की संकल्पना, उसके फायदे, उसकी साधनसामग्री (Hardware), कार्यप्रणालि (Software), सूचना-विनिमय-तारगुच्छ, इन सब का परिचय इस लेख में कराया हैं। आम व्यक्ति को आभासी उपकरणन के बारे में जरुरी सूचना प्रदान करने में अगर यह लेख कामयाब हो तो इसका प्रयोजन सफल होगा।


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काय नुसते वाचता प्रतिसाद द्या
हातची राखून द्या पण दाद द्या
आंधळ्यांची दिव्यदृष्टी व्हा तुम्ही
अन् मुक्यांना नेमके संवाद द्या

जीव कासावीस झाला आमुचा
मूळचे नाही तरी अनुवाद द्या
कालची आश्वासने गेली कुठे?
ते पुन्हा येतील त्यांना याद द्या

वेगळे काही कशाला ऐकवा?
त्याच त्या कविताच सालाबाद द्या
एवढा बहिरेपणा नाही बरा,
हाक कोणीही दिली तर साद द्या

गोरगरिबांना कशाला भाकरी?
गोरगरिबांना अता उन्माद द्या
व्हायचे सैतान हे डोके रिते,
त्यास काही छंद लावा नाद द्या

- नामानिराळा, मनोगत डॉट कॉम २००५०६१४
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